विधानसभा उपचुनावों में कांग्रेस आगे

जयपुर ।नामांकन के बाद मंडावा विधानसभा उपचुनाव की तस्वीर बिल्कुल साफ हो चुकी है। चुनाव में टक्कर कांग्रेस की रीटा चौधरी से भाजपा उम्मीदवार सुशीला सीगड़ा की होगी जिसमें रीटा चौधरी की जीत शतप्रतिशत निश्चित है। इसके ये कुछ आधार हैं जिनको इस क्षेत्र गांवों और कस्बों में आसानी से देखा और समझा जा सकता है। सर्व प्रथम तो लोगों को रीटाजी का हारने के बाद भी इस क्षेत्र से लगातार संपर्क और विकास कार्य करवाने का जज्बा बहुत पसंद आया है। दूसरे कुंभाराम नहर के पानी को इस क्षैत्र के लोगों के लिये मंजूर करवाना महिला कालेज खुलवाने सहित अनेक गांवों की छोटी मोटी समस्याओं से निजात  दिलाने के जो अथक प्रयास उन्होंने किये उसे लोगों ने पसंद किया है। तीसरे चौधरी रामनारायण जी के लंबे राजनीतिक जीवन में गांव गांव में उनके द्वारा करवाये गये विकास कार्य लोगों की आंखों के सामने हैं तथा पिछले 20 सालों का भाजपा का काम भी उनके सामने हैं जिसमें भाजपा ने अपने कार्यकाल में जनता के साथ धोखाधड़ी और किसान को नुकसान पहुंचाने के अलावा और कोई काम नहीं किया वो भी उनके सामने है। और जब वे तुलना करते हैं तो पाते हैं कि जागीरदारी व्यवस्था से त्रस्त इस क्षेत्र को कांग्रेस ने कहाँ से कहाँ पहुंचाया था और भाजपा इस सबकुछ को निजी पूंजीपतियों को सौंपकर  नई जागीरदारी व्यवस्था स्थापित करने जा रही है जिससे बचना जरूरी है। चौथे लोगों के दिल में हारने के बाद भी क्षेत्र से लगाव रखने के लिये रीटाजी के प्रति एक सहानुभूति की लहर पैदा हुई है। मुझे अनेक ऐसे लोग मिले हैं जो कहते हैं कि पिछली बार तो कोनी दिया पण अबकी बार छोरी नं बोट देस्या। दूसरी तरफ चुनाव से पहिले ही बेचारी सुशीला जी को खुद भाजपा के लोगों ने विलेन बनाकर पेश कर दिया जैसे किसी दूसरे के घर में कोई बेगाना जबरदस्ती घुस आये।लोगों ने सुशीला जी के नामांकन के बाद प्रेस को दिये वक्तव्य को भी पसंद नहीं किया जिसमें उन्होंने जिले के बजाय कश्मीर पर अधिक ध्यान दिया। उनका व्यक्तित्व जिस ढंग से जिले की राजनीति में विवादग्रस्त रहा है उसको सभी पढे लिखे लोग जानते हैं।जिसमें उनका रोल विवाद पैदा करने वाली नेता के रूप में ही अधिक रहा है।ऐसी स्थिति में उनकी उम्मीदवारी भाजपा के लिये लोगों में कोई अच्छा संदेश दे पाये इसकी संभावना बहुत कम है।इसलिये परिणाम में तो कोई दो राय नहीं परंतु इस चुनाव को ऐतिहासिक बनाया जाना चाहिये ताकि दिल्ली में बैठे तानाशाहों को भी लगे कि यह क्षेत्र सांप्रदायिक ताकतों को और पूंजीवाद परस्त नीतियों को पसंद नहीं करता।